Documentary on Bastar by Mumbai’s art rock band: मुंबई के एक रॉक बैंड ने बस्तर की संगीत पर एक डॉक्यूमेंट्री तैयार की है, जो 9 अगस्त को रिलीज होगी।

Documentary on Bastar by Mumbai's art rock band: टीम ने इस काम को चुनौती नहीं, बल्कि अवसर माना। आदिवासी कलाकारों के साथ काम करना रोचक था, क्योंकि वे रॉक कल्चर से अनजान हैं लेकिन वर्ल्ड म्यूजिक में माहिर हैं। हमने उनके संगीत से सीखा, जिसे अब नई प्रस्तुति के रूप में पेश किया जा रहा है।

Documentary on Bastar by Mumbai’s art rock band: मुंबई के आर्ट रॉक बैंड ने बस्तर की डाक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की

मुंबई के एक आर्ट रॉक बैंड ने पं. दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम में बस्तर पर बनी डाक्यूमेंट्री “जादू बस्तर की…” की स्क्रीनिंग की। यह लगभग 55 मिनट की डाक्यूमेंट्री आदिवासी गीत-संगीत, आदिवासी कलाकृतियों के लघु साक्षात्कार, और बस्तर के सुंदर वातावरण को दर्शाती है।

डाक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग के बाद की बातें

स्क्रीनिंग के बाद, बैंड के सिंगर पीयूष ने कहा, “बस्तर में काम करना आसान नहीं है। डाक्यूमेंट्री बनाते समय हमारे तीन साथी किसी कारणवश वापस लौट गए थे। बस्तर प्रशासन को लगा कि हम इस काम को पूरा नहीं कर पाएंगे, लेकिन हमने इसे सफलतापूर्वक पूरा किया।”

डाक्यूमेंट्री की लॉचिंग 9 अगस्त को आदिवासी दिवस पर की जाएगी और इसे यूट्यूब पर अपलोड किया जाएगा। इस डाक्यूमेंट्री के गीतों में बैंड टीम के साथ बस्तर के लोक कलाकार लाखेश्वर खुदराम की आवाज भी शामिल है। इससे पहले, पांच गाने यूट्यूब पर जारी किए जा चुके हैं। ये गाने बस्तर के गीत-संगीत और विश्व संगीत को जोड़कर तैयार किए गए हैं। इस अवसर पर बैंड ने “कैसा जादू है तेरे बस्तर में…” गाया, जिसे सुनकर सभागार तालियों से गूंज उठा।

आदिवासी कलाकार और वर्ल्ड म्यूजिक

पीयूष ने कहा कि बैंड अफ्रीका के कलाकार रिचर्ड बोना से प्रेरित है और पश्चिमी अफ्रीका के देश माली के कलाकारों से प्रभावित है। माली में म्यूजिक पर बैन लगने के बाद, उन्होंने अमेरिका जाकर अपना पैशन पूरा किया। टीम के सदस्यों ने बताया कि उन्होंने आदिवासी कलाकारों के साथ काम को चुनौती नहीं, बल्कि अवसर माना। आदिवासी कलाकार भले ही रॉक कल्चर नहीं जानते, लेकिन वे वर्ल्ड म्यूजिक की गहरी समझ रखते हैं। बैंड ने उनके गीत-संगीत से सीखा और उसे पुनः प्रस्तुत किया है।

बस्तर की सच्चाई

पीयूष ने कहा, “देश में बस्तर की जो छवि बनाई गई है, वह सच्चाई से बहुत अलग है। बस्तर में हमें पता चला कि सांस लेना क्या होता है। अफसोस है कि हम बस्तर की केवल पांच प्रतिशत वास्तविकता ही दिखा पाए। बंदूक और गोली के अलावा वहां की भाषा और बोली के बारे में कोई नहीं सोचता। हमें खुशी है कि हमने बस्तर को जानने का अवसर प्राप्त किया।”

Exit mobile version